सिमरी: बिहार में भू राजस्व एवं सुधार विभाग द्वारा भू सर्वेक्षण का कार्य कराया जा रहा है। जिसको लेकर लोगों के मन में कुछ भ्रांतियां भी है। इन्हीं भ्रांतियां को दूर करने के उद्देश्य से शनिवार को सिमरी प्रखंड मुख्यालय स्थित सभागार भवन में जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया था। जागरूकता शिविर के दौरान जिलाधिकारी अंशुल अग्रवाल ने लोगों से कहा कि भू सर्वेक्षण को लेकर रैयतों को घबड़ाने की आवश्यकता नहीं है। कुछ यूट्यूब चैनलों द्वारा भ्रामक जानकारियां फैलाई जा रही है जिन पर ध्यान नहीं देना है। भू राजस्व एवं सुधार विभाग द्वारा जारी किए गए प्रपत्र 2 एवं 3(1) को भरकर स्वघोषणा के साथ विभाग के वेबसाइट पर जमा करें अथवा शिविर में उपस्थित अधिकारियों के पास जमा कर दें। इस दौरान उन्होंने सर्वे कार्य में लगे कर्मियों को भी सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें। अगर किसी भी तरह की शिकायत पाई जाती है तो उक्त कर्मी के विरुद्ध सख्त विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
भू सर्वेक्षण के दौरान लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इनमें से कुछ सामान्य सवालों का जवाब जानने के लिए नीचे पढ़ें:-
भूमि सर्वेक्षण का क्या है उद्देश्य, यह लोगों के लिए क्यों है जरूरी?
बक्सर के डीएम अंशुल अग्रवाल ने बताया कि वर्तमान में कई जगहों पर काफी पुराने खतियान के आधार पर काम चलाया जा रहा है। भूमि सर्वेक्षण का उद्देश्य पुराने खतियान को अपडेट करना है, जिसमें जमीन की खरीद-बिक्री से जुड़े बदलाव भी शामिल होंगे। नये जेनरेशन के लोगों के बीच जमीन का बंटवारा होता है तो इस कारण से काफी परेशानी होती है। इन सब कारणों से बिहार में भूमि विवाद बहुत अधिक बढ़ रहा है। विशेष सर्वेक्षण के बाद भूमि विवादों में काफी हद तक कमी आएगी।
सर्वे क्या है और ये क्यों जरूरी है?
सबसे पहले अगर हम यह समझना चाहे कि यह सर्वे क्या है तो बता दें कि आजादी से पहले ही एक सर्वे हुआ था। बाद में 1960 के दशक में एक रिवाइज्ड सर्वे किया गया था। यह सर्वे इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि रिवाइज्ड सर्वे पूरा नहीं हो पाया था। बहुत जिलों में उसके सही रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। अभी वर्तमान में जमीन की क्या हालत है इसे लेकर कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। सरकार का रिकॉर्ड ग्रेट ग्रेंड फादर के नाम से चल रही है। इस कारण से खरीद और बिक्री में भी बेहद परेशानी होती रही है। इस मामले में सरकार की नियत बिल्कुल सही है। लैंड का रिकॉर्ड अप टु डेट होनी ही चाहिए। अभी जो लोग हैं उनके नाम पर उसका रिकॉर्ड दर्ज होना चाहिए। जो कि इस सर्वे के माध्यम से पूरा होगा।
खतियान क्या होता है?
खतियान, जमीन से जुड़ा एक दस्तावेज़ होता है। इसे सर्वे में बनाए जाने वाले अधिकार का अभिलेख भी कहा जाता है। खतियान में, हर जमीन व उसके मालिक के बारे में जानकारी होती है। जैसे कि उसका नाम, पिता का नाम, रकवा, प्लाट नंबर, मौज़े का नाम, नंबर, ज़िला, सरकार का नाम, और उसका पूरा पता. साथ ही, खतियान में हर किसान के प्लाट का क्षेत्रफल एकड़, डेसीमल, और हेक्टेयर में भी लिखा होता है।
सर्वे 2 आधार पर होगा – टाइटल और पोजिशन
सर्वे दो आधार पर होगा। पहला टाइटल और दूसरा पोजीशन। यहां हम बता दें कि टाइटल फिक्स करना सरकार के अंदर नहीं है। हालांकि प्राथमिक तौर पर सर्वे में यह तय करना होगा कि उक्त जमीन पर टाइटल किसका है। साथ ही सर्वे के दौरान पोजीशन भी देखा जाएगा की जमीन का टाइटल और कब्जा एक ही व्यक्ति के नाम पर है या नहीं।
जमीन पर कब्जा का आधार क्या होना चाहिए?
जमीन पर अगर किसी व्यक्ति का कब्जा है तो सर्वे में देखा जाएगा कि उसका आधार क्या है। कोई भी जमीन अगर उसके पास आया है और वो उसके ऊपर दावा करता है तो, वो या तो खरीदने के बाद आया होगा या उसे गिफ्ट मिला होगा या विरासत में उसे मिला होगा। तीनों में से कोई एक माध्यम जमीन पर स्वामित्व के लिए लोगों को दिखाना ही होगा। इसके लिए जरूरी कागजात सर्वे के दौरान पेश करना होगा।
दान के माध्यम से मिले जमीन के लिए क्या है प्रावधान?
दान के माध्यम से भी कई लोगों को जमीन मिले होते हैं। कई जगहों पर इसे लेकर लोगों के पास कोई कागजात नहीं होते हैं। ऐसे में दान करने वाले परिवार के पाले में पूरी तरह से मामला चला जाएगा। अगर वो परिवार अपने आप को उस जमीन से अलग कर लेता है तब ही दान में मिले जमीन का स्वामित्व किसी अन्य व्यक्ति को मिल सकता है। अन्यथा उसे उससे जुड़े कागजात दिखाने होंगे। हिंदू लॉ में ओरल डोनेशन का कोई प्रावधान नहीं है। अगर डोनर फेमिली बात से हट जाए तो लोगों को समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
बिहार से बाहर रहने वाले लोग इस सर्वे में कैसे ले सकते हैं हिस्सा?
वैसे लोग जिनका जमीन बिहार में हैं लेकिन वो बिहार में नहीं रहते हैं उनके लिए फिजिकली उपस्थित होना अनिवार्य नहीं है। सरकार की तरफ से ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही ऑप्शन उपलब्ध करवाए गए हैं। सरकार ने एक पोर्टल भी बनाया हैं। वो अपने टाइटल का पेपर उस पोर्टल पर अपलोड कर सकते हैं। जहां तक बात है प्लॉट पर पोजेशन साबित करने के लिए तो, वो उसके लिए पावर ऑफ अटर्नी दे सकते हैं। अगर पोजेशन में परेशानी है तो उन्हें एक बार उस जगह पर जरूर आना होगा। विवादित मुद्दे में लोगों को आना ही होगा। लेकिन अगर जमीन पर कोई विवाद नहीं है तो वो बिना आए भी इसे पूरा कर सकते हैं।
जिनका कागजी बंटवारा नहीं हुआ उनके लिए क्या है प्रावधान?
जिन लोगों का कागजी बंटवारा नहीं हुआ है। आपसी सहमति से पंचायत से या अन्य माध्यमों से बंटवारा किया गया है। सरकार ने इसके लिए वंशावली का सिस्टम बनाया है। खतियान जिनके नाम से है वहां से लेकर अब तक का वंशावली का निर्माण कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। ऐसे हालत में उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी। लेकिन अगर किसी तरह का कोई विवाद है और कोई भी पक्ष हिस्से को लेकर दावा करता है तो बिना कागजी बंटवारे में समस्या हो सकती है और विवाद अदालत तक पहुंच सकता है।
जमीन एक्सचेंज या ‘बदलेन’ करने वाले के लिए क्या है प्रावधान?
जमीन एक्सचेंज या ‘बदलेन’ के केस में भी अगर दोनों पक्षों की तरफ से सहमति है तो फिर कोई समस्या का सामना नहीं करना होगा। सरकार उसे वैलिडेट कर देगी और नए कागजात बन जाएंगे। लेकिन अगर कोई भी एक पक्ष इस बात से पीछे हट जाता है तो समस्या बढ़ सकती है।
क्या कृषि योग्य भूमि और अन्य जमीनों के सर्वे में कोई अंतर होगा?
नहीं, दोनों ही जमीन का सर्वे एक ही तरह से किया जाएगा। इसमें फर्क यह है कि जमीन बसने योग्य जमीन के प्लॉट छोटे होंगे क्योंकि उसका एरिया कम होगा तो उसकी माप छोटे इंकाईं से होगी। लेकिन सर्वे का तरीका एक ही होगा।
गैरमजरूआ जमीन क्या होता है?
गैरमजरूआ जमीन वो जमीन है जिसका खतियान के आधार पर कोई भी निजी स्वामित्व नहीं है। अंग्रेजों के समय में ऐसे जमीनों के लिए एक मध्यस्थ बनाकर रखा गया था। इसके अंतर्गत भी दो भाग हैं: गैरमजरूआ आम और गैरमजरूआ खास। अगर गैरमजरूआ जमीन किसी एक ही परिवार के पास लंबे समय तक रह गया है तो उसका नेचर बदल गया है और वो अब गैरमजरूआ खास बन गयी है। अगर किसी के घर के सामने की कोई जमीन गैरमजरूआ है और उसपर लंबे समय से अगर हमारा कब्जा रहा है तो वो गैरमजरूआ खास बन गया है. ऐसे में नए सर्वें में गैरमजरूआ मालिक के तौर पर व्यक्ति का नाम जाएगा।